यह कहानी मुझे मेरे फेसबुक के एक मित्र ने भेजी थी, उन्होंने मुझसे यह घटना लिखने की कही थी सो अब आप आप उनकी इस कहानीका आनन्द उन्हीं की लेखनी से लीजिए।
मेरा नाम हेमन्त है मेरी उम्र 26 साल है और मैं छतीसगढ़ का रहने वाला हूँ। मैंने पिछले साल बी.ए. की परीक्षा पास की है और अब जॉब की तलाश में हूँ। मेरे परिवार में मेरे माता-पिता और मेरे बड़े भैया हैं जो मुझसे 6 साल बड़े हैं और उनकी पत्नी स्वाति जिनकी उमर 29 साल है और उनकी एक 5 साल की बच्ची भी है। मेरी और मेरी भाभी की बहुत अच्छी बनती है वो मुझसे अपनी सारे राज बांटती हैं और मैं भी उनसे अपनी सभी बातें बता देता हूँ। हमारा हँसी- मज़ाक लगा रहता है और हाँ.. मेरे मन में मेरी भाभी के प्रति कोई भी ग़लत विचार नहीं थे, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मेरी एक बड़ी बहन भी है, जिनका नाम सारिका है। वो मुझसे 7 साल बड़ी हैं और उनकी शादी हो चुकी है, उनके दो बच्चे भी हैं। मेरे भैया का नाम दिलीप है और वो बैंक में नौकरी करते हैं। मैं आपको बता दूँ कि मेरा घर शहर से 22 किलोमीटर दूर एक गाँव में है, जहाँ हमारे पुरखों की बहुत ज़मीन-जायदाद है और ऊपर वाले की दया से हमारे घर में धन की किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं है। मेरे पिताजी पूरी खेती- बाड़ी संभालते हैं और जब भी मौका मिलता है, उनका और मेरी माँ का रिश्तेदारों के यहाँ आना- जाना लगा ही रहता है। मेरे भैया रोज सुबह ऑफिस के लिए निकलते हैं और शाम को घर वापस आते हैं। यह बात लगभग एक साल पहले की है, जब मेरी दीदी सारिका अपने बच्चों के साथ हमारे घर आई हुई थीं। मेरी सारिका दीदी बहुत ही सुंदर हैं और उन्होंने अपनी देह- यष्टि बहुत ही संवार कर रखी है, उन्हें देख कर लगता ही नहीं है कि उनके दो बच्चे हैं। उनके तने हुए मम्मे और गोल-गोल पिछवाड़े को देख कर तो किसीका भी लंड खड़ा हो सकता है।
मेरे जीजाजी तो रोज ही मेरी दीदीको रगड़-रगड़ कर चोदते हैं, यह बताने की ज़रूरत नहीं है दोस्तो… हाँ… तो मैं बता रहा था कि घर पर सब लोग बहुत खुश थे, दिन भरकी मस्ती के बाद अब रात हो चुकी थी, हम सब खाना खाकर हँसी-मज़ाक कर रहे थे। रात के लगभग 10 बजे होंगे, तभी भैया बोले- अब सोना चाहिए, सुबह ऑफिस के लिए निकलना है! वो और भाभी सोने चले गए और मेरे माता-पिता पहले ही सो चुके थे। मेरी दीदी की बिस्तर भी मेरे ही कमरे में लगा दिया था और उनके बच्चों का भी बिस्तर मेरे ही कमरे में था। मैं आपको बता दूँ दोस्तो कि मेरी दीदी को आए हुए 6-7 दिन हो चुके थे, लेकिन उस रात एक ऐसी घटना घटी, जिसने मेरी सोच ही बदल दी। एक बिस्तर पर दीदी सो रही थीं, एक पर मैं और एक बिस्तर पर उनके दोनों बच्चे सो रहे थे। रात के करीबी 11:30 बजे होंगे, मुझे नींद नहीं आ रही थी और लाइट भी नहीं थी। लेकिन लैंप की हल्की रोशनी कमरे में थी। तभी मैंने देखा कि दीदी ने किसी को कॉल किया और फोन कट कर दिया। मतलब उन्होंने किसी नम्बर पर ‘मिस कॉल’ किया था। तभी कुछ देर बाद उनके फोन पर कॉल आया और उन्होंने मेरी तरफ देखा। मैं सोने का नाटक कर रहा था और उन्हें लगा कि मैं सो चुका हूँ और उन्होंने बात करना शुरू कर दिया। पहले मुझे लगा कि जीजा जी का फोन है और मैं उनकी बातें सुनने लगा और मुझे मज़ा आने लगा। क्योंकि दीदी चुदाई की बात कर रही थीं। मैंने देखा कि दीदी उत्तेजित हो गई थीं और अपने दूसरे हाथ से अपनी चूत को सहला रही थीं और सिसकारियाँ भर रही थीं। तभी मैंने देखा कि दीदी अपनी एक उंगली अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने लगीं और बोलने लगीं- और चोदो और ज़ोर से चोदो..! यानि कि दोस्तो, ‘फोन-सेक्स’ चल रहा था और यह सब सुन कर मेरा भी 8 इंच का लंड लोहे की छड़ बन गया था और मैं अपने लंड को सहलाने लगा। तभी मैंने देखा की दीदी झड़ गईं और ‘आह्ह… अह्ह’ करने लगीं। मेरे लंड ने भी थोड़ी देर बाद पिचकारी मार दी और मेरा पूरा अंडरवियर गीला हो गया। आज मेरे लंड से कुछ ज़्यादा ही पानी निकला और मुझे भी बहुत मज़ा आया। तभी मैंने दीदी को कहते सुना कि मनोज तुम्हारा लंड तो बहुत मज़ा देता है..! यह सुनते ही मेरे तो होश उड़ गए और मैं सब कुछ समझ गया और मुझे पता चल गया कि दीदी अपने देवर से चुदवाती हैं।
अब मैं दोनों की पूरी बात सुनना चाहता था, लेकिन फोन पर बात करने के कारण मैं तो केवल अपनी दीदी की ही बात सुन पा रहा था। तभी दीदी ने कहा- रोज-रोज एक ही खाना किसे पसंद है, टेस्ट तो बदलना ही चाहिए तभी तो मज़ा मिलता है! मैंने उनकी बातें सुनना जारी रखा। तभी मैंने दीदी को यह कहते सुना कि जब साली आधी घर वाली हो सकती है तो देवर आधा पति क्यों नहीं हो सकता! यह सुनते ही मेरे अन्दरका जानवर जाग गया और अब मैं अपनी भाभी के बारे में सोचने लगा। ये सब सोचते-सोचते मुझे कब नींद आ गई, मुझे पता ही नहीं चला। जब मैं अगले दिन सो कर उठा तो मैंने देखा कि सब लोग उठ चुके हैं और मेरी नज़र दीदी के मोबाइल पर पड़ी जो वहीं पर रखा हुआ था। मैंने देखा कि उनकी रात वाली सारी बातें रिकॉर्ड थीं। मैंने उन्हें जल्दी से अपने मोबाइल में कॉपी कर लिया और उनके मोबाइल को वहीं रख दिया और अब मैंने हाथ-मुँह धोया और जब भाभी चाय लेकर आईं तो मैंने देखा की भाभी आज कुछ ज़्यादा ही कामुक लग रही थीं। ऐसा शायद इसलिए था, क्योंकि अब मैं किसी भी तरह अपनी भाभी को चोदना चाहता था। जब मैंने पूरी रिकॉर्डिंग सुनी तो मुझे पता चला कि दीदी अपने देवर से जी भर कर चुदवाती हैं क्योंकि उसका लंड 7 इंच का है। अब इस बात को 3 महीने बीत चुके थे और दीदी के जाने के बाद से लेकर अब तक मैं रोज यही सोचता रहा कि भाभी को कैसे चोदा जाए और मैं रात को उनके कमरे के की-होल से भैया-भाभी की चुदाई देखने लगा। भैया-भाभी की मक्खन जैसी चूत में अपना 6 इंच का लौड़ा डाल कर 10-15 धक्कों में झड़ जाते थे और भाभी भी मज़े से चुदवाती थीं। जनवरी का महीना चल रहा था और ठंड में अब रात-दिन मुझे मेरी भाभी का सुंदर नंगा जिस्म नज़र आने लगा और मैं उन्हें चोदने के लिए तड़पने लगा। तभी भगवान ने मेरी सुन ली और मेरे जीवन मे एक ऐसी घटना घटी जिसने मेरी जिंदगी ही बदल दी। मेरी भाभी एक पढ़ी- लिखी औरत हैं और मेरे भैया उनके जॉब की कोशिश भी कर रहे थे। तभी भाभी को किसी एक प्रमाण-पत्र का सत्यापन करवाने के लिए रायपुर जाना ज़रूरी हो गया और इसके लिए भाभी का जाना ज़रुरी था। इसके लिए भैया-भाभी के साथ जाने वाले थे, लेकिन भैया को ऑफिस के काम से अर्जेंट 10 दिनों के लिए कोलकाता जाना पड़ गया, तो तय यह हुआ कि अब मैं भाभी के साथ रायपुर जाऊँगा। मैं आपको बता दूँ दोस्तों कि जगदलपुर से रायपुर 500 किलोमीटर दूर है और एक ही ट्रेन है, जो रात को 8 बजे निकलती है और अगले दिन सुबह 7 बजे रायपुर पहुँच जाती है और वहीं ट्रेन अगले दिन रात को 8 बजे रायपुर से निकलती है और सुबह 7 बजे जगदलपुर आ जाती है।
तो तय हुआ कि हम आज रात को निकलेंगे और अगले दिन रायपुर पहुँच कर दिन में अपना काम करा कर, उसी दिन रात को बापिस हो जाएँगे और भैया को कल निकलना था।
अब सब तैयारी हो गई और मैं बहुत खुश तो था, लेकिन यह सोच रहा था कि मौका तो मिलेगा ही नहीं। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। रात को भैया हमे छोड़ने स्टेशन आए और हम अपनी सीट पर चले गए और भैया वापस चले गए, उन्हें बिल्कुल सुबह निकलना था। हमारा टिकट एसी-प्रथम श्रेणी में था, लेकिन जल्दबाज़ी के कारण टिकट कन्फर्म न होकर आरएसी मिला था और हमें एक कूपे में एक ही सीट पर अपना सफ़र तय करना था। हम अपने कूपे में जाकर बैठ गए, आपको तो मालूम ही है कि एसी प्रथम श्रेणी में कूपे होते हैं और कोई दूसरा आपके कूपे में नहीं आता है। हमने खाना खाया और सोने की तैयारी करने लगे। टीटी भी टिकट चैक करके जा चुका था। तभी मैंने भाभी से कहा- भाभी आप सो जाइए, मैं यहीं बैठ जाता हूँ। ठंड बहुत ज़्यादा थी। भाभी ने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी और ऊपर से स्वेटर भी पहना था। तभी भाभी ने कहा- नहीं हेमन्त, सीट काफ़ी बड़ी है, हम दोनों सो सकते हैं। मैं तो यही चाहता भी था, तभी मैंने कहा- जी भाभी.. पहले अन्दर मैं सोता हूँ फिर उसके बाद आप मेरे आगे सो जाना..! तो भाभी ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। अब मैंने अपना जैकेट उतार दिया और लोवर में सो गया और भाभी ने भी अपना स्वेटर उतार दिया और कहा- ओह गॉड..हेमन्त..! मैंने कहा- क्या हुआ भाभी..! तो उन्होंने बताया कि वो अपनी नाईटी लाना भूल गई हैं। तो मैंने कहा- कोई बात नहीं भाभी.. आप साड़ी में ही सो जाओ..! और अब भाभी मेरे आगे सो रही थीं और हमने एक ही कंबल ओढ़ रखा था, क्योंकि ठंड का मौसम था और ठण्डक भी कम्बल लायक थी।
रात का एक बज चुका था, ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार में थी और भाभी भी गहरी नींद में सो रही थीं लेकिन मुझे कहाँ नींद आने वाली थी। तभी मैंने महसूस किया कि भाभी की गाण्ड बिल्कुल मेरे लंड के मुहाने पर है और मेरा लंड उसमे समा जाने के लिए फुंफकार मार रहा है। लेकिन मुझे तो डर लग रहा था, तभी मैंने अपने एक हाथ से भाभी को साड़ी के नीचे हाथ डाल दिया और धीरे-धीरे साड़ी को जाँघों तक सरका दिया और उनकी जाँघों को सहलाने लगा। लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा था और मज़ा भी बहुत आ रहा था। क्या बताऊँ कितना मज़ा आ रहा था.. यह तो वही जानता है, जिसने अपनी सग़ी भाभी को चोदा होगा! तभी मैं भाभी से और सट गया और उन्हें अपने से चिपका लिया। वो अभी भी नींद में थीं और मैंने धीरे-धीरे उनके ब्लाउज के दो बटन भी खोल दिए और उनके मम्मों को सहलाने लगा। भाभी के जिस्म की गर्मी पाकर मेरा लंड पूरे जोश में था और ऐसा करते-करते सुबह के 4 बज गए। तभी भाभी थोड़ी सी हिलीं और बस क्या था मेरे लंड ने पिचकारी मार दी। मैं क्या बताऊँ दोस्तों मेरे लंड से इतना वीर्य निकला, जितना पहले दो बार मूठ मारने से निकलता है।
मुझे इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था और मैं यही सोच रहा था कि जब मैं भाभी को चोदूँगा तो कितना मज़ा आएगा और मुझे कब नींद आ गई मुझे पता ही नहीं चला। अब सुबह के 6 बज रहे थे, भाभी उठ रही थी तभी मेरी भी नींद खुल गई और अभी भी मेरा एक हाथ भाभी की खुली जांघ पर था, दूसरा हाथ उनके मम्मों पर था। लेकिन मैंने सोने का नाटक किया और मैंने देखा कि भाभी उठीं और उन्होंने धीरे से मेरा हाथ हटाया और अपनी साड़ी और ब्लाउज ठीक किया। उन्हें लगा कि शायद मैंने ठंड की वजह से अपना हाथ उनके मम्मों पर और जाँघों पर रख दिया होगा। अब उन्होंने अपने कपड़े ठीक किए और मुझे उठाया और बोलीं- हम पहुँचने वाले हैं! मैं भी उठ गया और अब हम रायपुर पहुँच चुके थे। तभी मैंने भाभी से कहा- भाभी ऑफिस तो 10 बजे के बाद ही खुलेगा, हम किसी होटल में चलते हैं और वहीं से नहा-धोकर ऑफिस चलेंगे… ।